कान में रखना
हुई विदा बेटी समझाने लगी मां कान में
कान में ही रखना जो सुनो तुम कान से।
कान में कहने की आदत तुम डालो बेटी,
कहा जो भी जोर से होगी बात बड़ी छोटी।
गलती पड़े जो कान में रखना अपने दिमाग में,
सुधार कर लेना खुद में ही जीना तुम शान से।
कान में ही कहना मन की रखना सरल अंदाज,
मत होने देना छोटी छोटी बातों से रिश्ते खराब।
कान लगाएंगे जब सब सुनने को तेरे मन की,
मन में रखना दुख अपना कहना सबके मन की।
जीवन होता है सरल मुश्किल होती आसान,
सुनके जो कुछ बातों को न खींचे उनकी तान ।
कान नहीं लगाना तुम सुनने को दूसरों की बात,
बुरा भला सुनकर मत अपने मन को करना खराब।
ध्यान उसी पर देना लगे बात जो निज काम की ,
कहा सुनी पर लोगों की मत करना अनर्थ प्रलाप।
स्वरचित एवम मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश