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20 Apr 2017 · 1 min read

कान दीवारों के होते हैं

बीज वफ़ा के तू बोया कर
देख ग़मों को मत रोया कर

बहुत अहम हैं माँ की दुआएं
उनकी खातिर भी सोचा कर

ग़र खुशियों को जो तू चाहे
दिल औरों से भी जोड़ा कर

मुरझाएँगें पल मे सारे
शाख़ गु़लों के मत तोड़ा कर

हाथ न तेरे ये जल जाएँ
अंगारों से मत खेला कर

आँख उठा कर देख ले हमको
इश्क़ तुम्ही से है समझा कर

बचपन की ग़लती दुहरा कर
याद पुरानी फिर ताजा कर

तड़प रहे हैं कब से “प्रीतम”
रहम तू हम पर भी खाया कर

गिरह–
कान दिवारों के होते हैं
धीरे——धीरे बोला कर

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