कान दीवारों के होते हैं
बीज वफ़ा के तू बोया कर
देख ग़मों को मत रोया कर
बहुत अहम हैं माँ की दुआएं
उनकी खातिर भी सोचा कर
ग़र खुशियों को जो तू चाहे
दिल औरों से भी जोड़ा कर
मुरझाएँगें पल मे सारे
शाख़ गु़लों के मत तोड़ा कर
हाथ न तेरे ये जल जाएँ
अंगारों से मत खेला कर
आँख उठा कर देख ले हमको
इश्क़ तुम्ही से है समझा कर
बचपन की ग़लती दुहरा कर
याद पुरानी फिर ताजा कर
तड़प रहे हैं कब से “प्रीतम”
रहम तू हम पर भी खाया कर
गिरह–
कान दिवारों के होते हैं
धीरे——धीरे बोला कर