कान्हा फिर आओ ना
कृष्ण जन्माष्टमी पर मनहरण घनाक्षरी
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गोकुल में जन्म लिए, यशोदा को लाल दिए,
हर्ष भरे गाँव वाले, फिर तुम आओ ना।
दूध दही नहीं रही, छाछ न मलाई सही,
भोजन विषाक्त हुए, राय तो बताओ ना।
दुष्टों का बध किये, पापियों को रद्द किए,
बढ़ रहे असुरों को, धरा से हटाओ ना।
गोपियाँ ना सही रहीं, लाज ना मर्यादा कहीं,
प्रीत वाली भाषा अब, इनको पढ़ाओ ना।
जल भी विषाक्त हुए, नीर में भी जीव मुए,
फन शेष नागों के भी, अब तो दबाओ ना।
मीत हित नहीं रहे, मतलबी बातें कहें,
किशन सुदामा जोड़ी, मित्रता दिखाओ ना।
पापियों की नई दृष्टि, बढ़ रही शोक वृष्टि,
रोक पाप जल धार, पर्वत उठाओ ना।
मोह माया घेरे हुए, तम रात मन छुए,
गीता का ज्ञान भी अब, जग को बताओ ना।
ममता अबला रही, द्रौपदी पुकार रही,
दुःसाशन भी चीर हरे,गर्दन उड़ाओ ना।
गली गली शकुनी है, शुद्ध नहीं मकुनी है,
पासा नोट जीत रहा, बाजी पलटाओ ना।
नेट में बालक खोये, माता पिता खूब रोये,
टोली मीत मंडली की, आकर बनाओ ना।
माताएं भी व्यस्त रहीं, पालन है नहीं सही,
बन लाल यशोदा के, मेरी गोदी आओ ना।
नर सुद्धि सही नहीं,बाद कहीं सुखा कहीं,
कट रहे धरा वृक्ष , बाग तू लगाओ ना।
बोली नहीं मीठी कहीं, मीठी में भी विष रही,
तरंग से जीव मरे, बासुरी बजाओ ना।
राह संदीपन देखें, ज्ञान पोथी सब लेके,
गुरुकुल आदरश , शिष्य बन आओ ना।
धरम में धंधा बड़ा, सांच गले फंदा पड़ा,
जाल रूपी कौरवों से, धरा को बचाओ ना।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर, उ.प्र.
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