कान्हा ! तू तो जन्म से चोर है …
कान्हा ! तू तो जन्म से ही चोर है ,
अपने मीठे बेनों से सबके हृदयों को चुराया।
रात को चुपके चुपके कारागृह में आया,
कारागृह से चुपके से नंद बाबा के घर आया,
चोरी से ही तू यशोदा मां की गोद में आया,
घर भर का दुलारा बन जीवन धन कहलाया ।
बाल्यकाल में अपने ही घर माखन चोरी की ,
और खुद खाकर ग्वाल बालों को भी खिलाया।
गोपियों के घर घर जाकर चुपके से छींके तोड़े ,
ग्वाल बालों की टोली संग मटकों को फुड़वाया ।
तेरी चतुराई के संग तेरी ढिठाई का भी जवाब नहीं
चोरी की,बरजोरी की पर अपने पर नाम न धराया।
गोपियों ने की शिकायत यशोदा मां से तो उनको,
सबक सिखाने को घाट से वस्त्रों को भी चुराया ।
युवा हुए तो उनके गोपियों संग रास लीला की ,
उनके ह्रदय में डाका डाला उनका चैन चुराया।
बरसाने वाली राधा संग प्रीत का नाता जुड़ा ,
अमर प्रेम की जोत का जग में उजाला हुआ ।
वो नटखट नंद किशोर कर्मयोगी कृष्ण बन कर,
अंत में सब ब्रज वासियों को वियोग का दुख देकर,
चोरी से ही उनके जीवन से चला भी गया।