कानाफूसी है पैसों की,
कानाफूसी है पैसों की, कारों की-बाजारों की (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
कानाफूसी है पैसों की, कारों की-बाजारों की
सोने चॉंदी की दुकान पर, बिकने वाले हारों की
2
मोल कहॉं है ऑंसू का कुछ, सिर्फ हास्य ही बिकता है
बात करो मत इस दुनिया में, भाग्यहीन बेचारों की
3
नेता के अमरत्व-चाह के, चलते धन बर्बाद हुआ
जय-जयकार करो सब, नेता के बनवाए द्वारों की
4
धनी और निर्धन दुनिया में, दो प्रजातियॉं रहती हैं
गाथा जग में गाई जाती, केवल कोषागारों की
5
जब से पता चला है तन में, अजर अमर आत्मा कोई
खोज चल रही भीतर-भीतर, कतिपय क्रिया-विचारों की
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451