कातिल है तू मेरे इश्क का / लवकुश यादव”अज़ल”
कातिल है तू मेरे इश्क़ की ये निशान कह रहें हैं,
हर वक़्त हम सिर्फ एक चेहरे का दीदार कर रहें हैं।
महफ़िल शाम तुम्हारी कट रही है गैर की बांहों में,
एक आशिक़ की कब्र खाली है ये शमशान कह रहे हैं।।
आदतों का मशहूर परिंदा होने की सजा है,
एक हम हैं कि मुस्कराकर आँह भर रहें हैं।
हमारे कदमों की आहट से बढ़ गयी धड़कन तुम्हारी,
मसला यही है कि हम खुद को बर्बाद कर रहें हैं।।
बड़ी खूबसूरत है ये फौज सहेलियों की तुम्हारी,
आंखे ये कहानी कुछ दर्दनाक कह रहीं हैं।
मिजाज ए शर्त अब कभी होगा नहीं पूरा,
कातिल है तू मेरे इश्क़ की ये निशान कह रहें हैं।।
ऊंची हैं समुद्र की लहरें घबरा के तड़ाग कह रहें हैं,
एक आशिक़ की कब्र खाली है ये शमशान कह रहे हैं।।
हमारे कदमों की आहट से बढ़ गयी धड़कन तुम्हारी,
मसला यही है कि हम खुद को बर्बाद कर रहें हैं।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश