कातिल है अंधेरा
कातिल है अंधेरा
मिटा रहा है मुझे
और मेरे मिटते ही ,
पसार लेगा अपने पैर …
पर नासमझ है अंधेरा,
उसे नहीं पता कि ,
मेरे बुझते ही
मेरे मोतियों से ये अक्षर,
बन जायेंगे जुगनू और
ढ़क देंगे क्षितिज तक ,
इस प्यारी धरती को ….
और अंधेरा ?
खुद भी कहाँ बच पाएगा,
मुझे मिटा कर …..
– क्षमा ऊर्मिला