कागा पितरों से कहियो …
कागा ! श्राद्ध के प्रसाद का भोग ,
लगायियो अपना धर्म मान।
जो तुम्हें दिया गया अपने,
स्वर्गवासी पितृ जान ।
परंतु उड़कर बादलों के पार जाकर ,
एक संदेश अवश्य दीजियो आवश्यक जान ।
मोक्ष और मुक्ति तुम्हें अपने सुकर्मों ,
और प्रारब्ध द्वारा मिलेगी यह देना ज्ञान।
तुम्हारे लिए मुक्ति और मोक्ष का द्वार ,
भला क्या खोल सकेगी तुम्हारी ,
निष्ठुर और स्वार्थी संतान।
ऐसी संतान से अब कोई उम्मीद न रखो ,
ना पालो कोई अरमान ।
अब तुम केवल ईश्वर का करो ध्यान ।