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15 Feb 2024 · 1 min read

*कांटों की सेज*

आंखों में आसूं उदासी बहुत है
आज जो मेंरे टूटे है सपने
गैरों की बातें करूं क्या तुझसे
दूर हो गए है अब मेरे अपने

कोई नहीं है साथ मेरे अब
तन्हाई ही है अब मेरी सहेली
कौन सुलझाएगा अब ये उलझन
मैं तो खुद ही बन गया पहेली

जोड़ के नाता फूल से कब मैं
कांटों की सेज पर पहुंच गया
नींद भी मुझको अब आएगी कैसे
वो फूल भी मुझको छोड़ गया

लगती थी जब कोई चोट मुझे
वो मेरे घावों का मरहम बनता था
कोई तो पूछो उससे यारों
इस तरह मुझे छोड़ना क्या बनता था

कोई दिल में बसे और तोड़ दे उसको
ये तो कोई इंसाफ़ नहीं
मिली सज़ा है मुझको क्यों
जब मुझपर कोई इल्ज़ाम नहीं

लोगों की बातों में क्यों आया तू
देख लेता मेरे दिल का प्यार
साथ जीने की थी कसमें खाई
कहां गया अब वो तेरा सच्चा प्यार

सुना है हमने तू भी खुश नहीं है
बिछड़ के मुझसे मेरी जान
जो आ जाएगी अपने प्यार के पास
इसमें हर्ज़ ही क्या है मेरी जान

बस एक बार मुझसे कह दे
माफ़ी भी तुझसे मैं मांग लूंगा
फिर तू नहीं चाहता साथ मेरा तो
तेरी इस चाह को भी मैं मान दूंगा।

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Books from सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
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