Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 May 2024 · 2 min read

काँच और पत्थर

पल्लू में उसके
बंधे रहते हैं
अनगिनत पत्थर,
छोटे-बड़े बेडौल पत्थर
मार देती है किसी को भी
वो ये पत्थर।
उस दिन भी उसके पल्लू में
बंधे हुए थे
ऐसे ही कुछ पत्थर।
कोहराम मचा दिया था
उस दिन उसने
रेलवे-स्टेशन पर।
उन पत्थरों से उसने
अचानक तोड़ दिए थे
चार-पाँच छोटे-बड़े काँच
और फूट गए थे
दो-एक के सिर।
छोड़ो-
जाने दो उसे
‘है वो विक्षिप्त’
कर दिया गया उसे माफ़
यह कहकर,
गुनाह जो उसने किये
आज रेलवे स्टेशन पर।
हट गए थे
उसके रास्ते से
कुछ लोग डरकर,
और कुछ लोग
हँस रहे थे ऐसे
जैसे कोई भैंस रम्भाये
खींसें निपोरकर।
पर नहीं मालूम ये
किसी को भी कि
चुभी हुई है ये काँच
उसके गले में
बनकर एक फाँस,
और चस्पा हैं
अनगिनत सिसकियाँ
अभी भी उसके
विवश, असहाय
घायल मन पर।
काँच से ज्यादा
उसकी फाँस
करती थी घुटन
और होती थी पैदा
इस तरह जो चुभन,
वो जाती थी बाहर
सिसकियों पर चढ़कर।
काँच के टूटने पर
छपाक की आवाज पर
काँच का फ़ैल जाना
बिखरकर,
दे जाता है उसे
दिलासा पल भर।
इसीलिए,
जब वो देखती है
खिड़कियाँ और
उनसे आर-पार
देखने वाले काँच,
तो उसके
पल्लू में समाए पत्थर
बरस पड़ते हैं,
अनायास ही
उस काँच पर-
किसी भी
रेलवे स्टेशन पर।
‘वो है विक्षिप्त’
इसलिए शायद,
लोगों को लगता है एक डर
उसके समीप जाने पर,
और माफ़ कर दिए जाते हैं
अपराध उसके
चाहे वो यदा-कदा
क्यों न फोड़ दे
दो-एक के सिर।
पर वो कैसे माफ़ कर दे?
किसको दे क्षमादान?
उन गुनाहों पर-
जो हुए उसके साथ
चंद रोज़ पहले,
या महीनों या साल पहले
ऐसे ही किसी
रेलवे स्टेशन पर,
जिसकी वजह से वो
कहलाती है आज विक्षिप्त।
क्यों नहीं मचाया था शोर
क्यों नहीं चिल्लाया था ये
क्यों नहीं बोला था ये मूक काँच?
चाहे छोटी सी छनाक ही सही,
तब शायद
उसके पल्लू में
नहीं थे पत्थर, और
वो थी अकेली
किसी रेलवे स्टेशन पर।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

2 Likes · 111 Views
Books from दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
View all

You may also like these posts

ग़ज़ल _ दर्द भूल कर अपने, आप मुस्कुरा देना !
ग़ज़ल _ दर्द भूल कर अपने, आप मुस्कुरा देना !
Neelofar Khan
मुक्त दास
मुक्त दास
Otteri Selvakumar
कुछ शब्द
कुछ शब्द
Vivek saswat Shukla
3520.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3520.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
वन गमन
वन गमन
Shashi Mahajan
मुझे वास्तविकता का ज्ञान नही
मुझे वास्तविकता का ज्ञान नही
Keshav kishor Kumar
झुला झूले तीज त्योहार
झुला झूले तीज त्योहार
Savitri Dhayal
*ये आती और जाती सांसें*
*ये आती और जाती सांसें*
sudhir kumar
विरह रूप (प्रेम)
विरह रूप (प्रेम)
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
Aarti sirsat
महामोह की महानिशा
महामोह की महानिशा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
मृतशेष
मृतशेष
AJAY AMITABH SUMAN
जीवन में निरंतर जलना,
जीवन में निरंतर जलना,
जय लगन कुमार हैप्पी
कभी कभी ये जीवन आपके सब्र की परीक्षा लेता है आपको ऐसी उलझनों
कभी कभी ये जीवन आपके सब्र की परीक्षा लेता है आपको ऐसी उलझनों
पूर्वार्थ
” क्या फर्क पड़ता है ! “
” क्या फर्क पड़ता है ! “
ज्योति
पहला ख्याल
पहला ख्याल
Sonu sugandh
अंतरात्मा की आवाज
अंतरात्मा की आवाज
SURYA PRAKASH SHARMA
मंटू और चिड़ियाँ
मंटू और चिड़ियाँ
SHAMA PARVEEN
झाड़ू अउरी बेलन
झाड़ू अउरी बेलन
आकाश महेशपुरी
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
"अजीब रिवायत"
Dr. Kishan tandon kranti
आपकी अच्छाईया बेशक अदृष्य हो सकती है
आपकी अच्छाईया बेशक अदृष्य हो सकती है
Rituraj shivem verma
उड़ान
उड़ान
MEENU SHARMA
सात जनम की गाँठ का,
सात जनम की गाँठ का,
sushil sarna
महाश्रृंङ्गार_छंद_विधान _सउदाहरण
महाश्रृंङ्गार_छंद_विधान _सउदाहरण
Subhash Singhai
संघर्ष ज़िंदगी को आसान बनाते है
संघर्ष ज़िंदगी को आसान बनाते है
Bhupendra Rawat
*01 दिसम्बर*
*01 दिसम्बर*
*प्रणय*
अत्यधिक खुशी और अत्यधिक गम दोनो अवस्थाएं इंसान के नींद को भं
अत्यधिक खुशी और अत्यधिक गम दोनो अवस्थाएं इंसान के नींद को भं
Rj Anand Prajapati
अधूरा मिलन
अधूरा मिलन
Er.Navaneet R Shandily
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
Loading...