क़ैद में 15 वर्षों तक पृथ्वीराज और चंदबरदाई जीवित थे
चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुलतान है, मत चुक्के चौहाण।।
पच्चीस गज ऊंचाई पर घंटा टंगा हुआ था। महाराज पृथ्वीराज चौहान अंधे कर दिए गए थे। उन्हें केवल घंटे की आवाज पर ही निशान लगाना था। पूरी दूरी डिग्री, बांये-दाहिने का हिसाब लगाकर कवि चंदबरदाई ने सबको सुनाकर अपने सम्राट पृथ्वीराज चौहान को यह जानकारी दी।
जैसा कि ‘पृथ्वीराज रासो’ का दावा है कि पृथ्वीराज को एक कैदी के रूप में ग़ज़नी ले जाया गया और अंधा कर दिया गया। यह सब सुन-जानकर, कवि चंदबरदाई ने गज़नी की यात्रा की और मुहम्मद ग़ोरी को चकमा दिया। शब्दभेदी वाण चलाने वाला एकमात्र अन्तिम राजा पृथ्वीराज था। जिसने ग़ोरी के आदेश पर अन्धा होने के बावजूद ग़ोरी की आवाज़ की दिशा में तीर चलाया और उसे मार डाला। कुछ ही समय बाद, पृथ्वीराज और चंद बरदाई ने एक-दूसरे को मार डाला, ताकि शत्रु के हाथ जीवित न लगें।
यानि अन्धे हो चुके पृथ्वीराज की मृत्यु 1192 ई. में नहीं हुई थी, जैसाकि अधिकांश इतिहासकार मानते हैं। पृथ्वीराज रासो की मान्यता के अनुसार मुहम्मद ग़ोरी 1206 ई. शब्दभेदी वाण खाकर मृत्यु को प्राप्त हुआ था, इसलिए पृथ्वीराज की कब्रनुमा समाधि पर आज भी अफ़ग़ानी मुस्लिम जूते मारते हैं, क्योंकि क़ैद में रहकर भी अनेक यातनाएँ सहकर भी 15 वर्षों (1192 ई. से लेकर 1206 ई.) तक पृथ्वीराज और उसका राजकवि चंदबरदाई स्वाभिमान से जीवित थे।
उनके इस शौर्य, वीरता व अदम्यसाहस को ‘पृथ्वीराज रासो’ में बाद के समय में पुस्तक में शामिल किया गया। परम्परागत समस्त ‘रासो काव्य’ हिन्दी के आदिकाल में रचित ग्रन्थ हैं:—
पृथ्वीराज रासो—चंदबरदाई; बीसलदेव रासो—नरपति नाल्; परमाल रासो—जगनिक; हम्मीर रासो—शार्ङ्धर; खुमान रासो—दलपति विजय; विजयपाल रासो—नल्लसिंह भाट; बुद्धिरासो—जल्हण; मुंज रासो—अज्ञात कवि; कलियुग रासो—रसिक गोविन्द; कायम खाँ रासो—न्यामत खाँ जनकवि; राम रासो—समय सुन्दर; राणा रासो—दयाराम (दयाल कवि); रतनरासो—कुम्भकर्ण; कुमारपाल रासो—देवप्रभ। इसमें अधिकतर वीर-गाथाएं हैं ।
“पृथ्वीराज रासो” प्रसिद्ध हिन्दी रासो काव्य है। रास साहित्य जैन परम्परा से संबंधित है तो रासो का संबंध अधिकांशत: वीर काव्य से, जो कि उस समय प्रचलित ‘डिंगल भाषा’ में रचा गया। ‘रासो’ शब्द की उत्पत्ति निम्न छंद में देखी जा सकती है:—
रासउ असंभू नवरस सरस छंदू चंदू किअ अमिअ सम
शृंगार वीर करुणा बिभछ भय अद्भूत्तह संत सम।
इस तरह ‘पृथ्वीराज रासो’ के कारण हम हिन्दू महान शासक पृथ्वीराज चौहान की महानता को आज तक गर्व से देखते हैं। जबकि मक्कार, धोकेबाज़ मुहम्मद गौरी को हम उसी खलनायक की तरह देखते हैं। कुछ लोग ‘पृथ्वीराज रासो’ को 16 वीं सदी का ग्रन्थ बताते हैं जो कि ग़लत है। मुहम्मद गोरी की हत्या के बारे में कई तर्क दिए गए हैं। जिनमें दो तर्क सबसे ज़ियादा दिए जाते हैं।
पहला तर्क: 1206 में, मुहम्मद गोरी ने भारत में मामलों को सुलझा लिया, भारत में सभी मामलों को अपने गुलाम जनरल कुतुब अल-दीन ऐबक के हाथों में छोड़ दिया। गजनी वापस जाते समय, मुहम्मद गोरी का कारवां सोहावा (जो आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में झेलम शहर के पास है) के पास धमियाक में विश्राम किया। 15 मार्च, 1206 को शाम की प्रार्थना करते समय उनकी हत्या कर दी गई थी। उनके हत्यारे अपुष्ट हैं। यह खोखर या इस्माइली हो सकता है। कुछ लोग रामलाल खोखर को उसका हत्यारा मानते हैं। इतिहासकारों में इसे लेकर मतभेद हैं, कुल मिलकर कहना ये कि इस घटना की स्पष्ट रूप से पुष्टि नहीं होती। ये बनाई गई काल्पनिक कथा है ताकि ग़ोरी वध की सत्यकथा को छिपाया जा सके। एक शासक का, उसके ही एक क़ैदी के हाथों मारा जाना, बड़ी लज्जाजनक बात है।
दूसरा तर्क: भारतीय लोककथाओं में, मुहम्मद गोरी की मृत्यु पृथ्वीराज चौहान के कारण हुई थी, लेकिन यह ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता नहीं चलता है और पृथ्वीराज की मृत्यु मुइज़ की मृत्यु से बहुत पहले हो गई थी। ये ग़लत है कि पृथ्वीराज 1192 में मारा गया। सच्चाई यह है कि वह पन्द्रह बरसों तक अन्धा होकर ग़ोरी की क़ैद में रहा। एक उपेक्षित जीवन जिया और शब्दभेदी वाण चलकर उसने ग़ोरी का अंत किया।
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