कह-मुकरी
उसका रूप भुला ना पाऊं,
छोडूं ना मैं जब पा जाऊं,
उसके बिन यह दुनिया खोटी,
क्या सखि साजन ? ना सखि रोटी !
गर्म करे वो रातें मेरी,
ढँक दे कोमल काया ऐ री,
उफ़ ना लेने दे अँगडाई,
क्या सखि साजन ? नहीं रजाई !!
नाक दबाये आँख छिपाए,
खींचे कानो को मन भाए,
रँग रंगीला कर दे पागल,
क्या सखि साजन ? ना सखि गागल !!
कभी साथ ना छोड़ा जाए,
और कभी बिलकुल ना भाए,
दिन-दिन बदले उसका रूप,
क्या सखि साजन ? ना सखि धूप !!
मेरे तन को दे वह गर्मी,
चूमें लब जब कर बेशर्मी,
जीभ निगोड़ी री जली जाय
ऐ सखि साजन ? ना सखी चाय !!
~ अशोक कुमार रक्ताले