कहो तो……….
न खिल पाएं, न खुल पाएं
न दे पाएं तुम्हें एक भी फूल
होठ बंद ही रहे हमारे हरदम
पर रहे हर पल सदा अनुकूल।
देखा था तो लगा पा लिया
सुना था किसी से सुनता रहा
तुम्हारे बातें , तुम्हारे बारे में
हो न वक्त कभी भी प्रतिकूल।
भला क्या है, बुरा क्या है ?
अच्छा क्या है, गलत क्या है ?
कभी सोच नहीं विचारा नहीं
बस, हो नहीं हमसे कोई भी भूल।
कह न सको , व्हाट्स अप कर दो
तुम्हारा शहर छोड़ दूंगा मैं अब
रह लूंगा अंधेरे में सदा के लिए
कमरे की सभी बत्ती करके गुल।
**********************************
@मौलिक रचना- घनश्याम पोद्दार
मुंगेर