कहो जेठ तुम कब आये
कहो जेठ तुम कब आये
अशांत घड़ी थी व्यस्त बड़ी थी
बोझिल पल हरवक्त पड़ी थी
फूर्सत के क्षण ने कुछ गाये
कहो जेठ तुम कब आये….
ज्योति प्रलय साकार खड़ा है
जलता पशु बेजान पड़ा है
दीन विकल रोदन ध्वनि गाये
कहो जेठ तुम कब आये….
आग उगलकर अस्थि गलाती
उग्र लपट तो लू बरसाती
व्याकुलता से मन घबराये
कहो जेठ तुम कब आये….
उदास पहर है निराश शहर है
आहटहीन हर गली में घर है
तपन पूंज ने तन झुलसाये
कहो जेठ तुम कब आये….
वज्र कठोर रुप धर आये
तृष्णा धरा की बढ़ती जाये
घन काले अब जल बरसाये
कहो जेठ तुम कब आये….
भारती दास ✍️