कहो ज़रा
कहो ज़रा
मेरे बिन तुम कैसे हो?कहो ज़रा।
याद मेरी जब आती है,
आँख में आँसू लाती है,
क्या अब भी उन्हे छिपाते हो?
क्या अब भी तुम वैसे हो?कहो ज़रा।
मेरे बिन तुम कैसे हो? कहो ज़रा।
बैठ के कङवे नीम तले,
मीठी नज़्मे लिखते हो,
क्या अब भी चाय ठंडी हो जाती है?
क्या अब भी पहले जैसे हो?कहो ज़रा।
मेरे बिन तुम कैसे हो? कहो ज़रा।
नज़र ढूँढती है क्या अब,
या भूल गये तुम वो सब,
क्या राह मेरी अब भी तकते हो?
क्या जैसे थे वैसे हो?कहो ज़रा।
मेरे बिन तुम कैसे हो?कहो ज़रा।
चाँदी उगी क्या बालों में,
झुर्रियाँ आई क्या ग़ालो पे,
क्या नाक पे ऐनक रखते हो?
क्या मेरी कल्पना जैसे हो?कहो ज़रा।
मेरे बिन तुम कैसे हो?कहो ज़रा।
सुरिंदर कौर