कहो कैसे जिए इस ज़िन्दगी को
कहो कैसे जिए इस ज़िन्दगी को
ज़रूरत आपकी है आशिकी को
मिटाकर फ़ासले आराम दे दो
बहुत मुश्किल है सहना बेरुखी को
बहाकर आसमां आँसू मुसलसल
बुझाता है जमीं की तिश्नगी को
सजाकर अपने होठों पर कभी तो
अमर कर दो हमारी शायरी को
गुजारा आप बिन होता नहीं है
करे दिल तोड़ दे ‘माही’ घडी को
माही