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31 Dec 2021 · 1 min read

बीतल बरस।

कहै छी
बरस बीत गेलै।
परंच हम बीत गेली हैय।

वोहिना जेना
फलां त मर गेलै।
समसान घाट से आबै हैय।

सोचू न
बरस फेर आ गेलै।
परंच बीतल समयनै आबैय हैय।

सोचूं न
फलां त मर गेलैय।
अब हमर बारी आबैय हैय।

सोचूं न
घमंड में हम जियै।
उम्र बीतल जा रहल हैय।

सोचूं न
सभ के पड़त जायै।
राजा रंक बाभन सोलकन कैंय।

सोचूं न
सभ के पड़त जायै।
रामा ज्ञानी अज्ञानी प्रानी कैंय।

स्वरचित © सर्वाधिकार रचनाकाराधीन

रचनाकार-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।

Language: Maithili
402 Views
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