कहीं साथी हमें पथ में
** मुक्तक **
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कहीं साथी हमें पथ में हमेशा तो नहीं मिलते।
हमेशा फूल हर मौसम नहीं हैं वर्ष भर रहते।
विजय उसको मिला करती अकेला बढ़ चला है जो।
अकेले हार बैठे तो किनारे मिल नहीं सकते।
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मिटाकर दूरियां मन की जरा अब पास आ जाओ।
खड़ी संदेह की दीवार को आकर ढहा जाओ।
खुली पुस्तक बने जीवन सभी पढ़ कर सकें बातें।
हटेगा ये तमस आकर जरा दीपक जला जाओ।
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हृदय में स्नेह की मृदु भावनाओं को जगाओ तो।
लकीरों से जरा हटकर कहीं मन को लगाओ तो।
अगर हो चाहते सब चाहतों को पूर्ण कर लेना।
निराशा के तमस को शीघ्र जीवन से भगाओ तो
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मुहब्बत में सदा दीवानगी अच्छी नहीं होती।
अकेलापन लिए वीरानगी अच्छी नहीं होती।
सहज होकर मिलें तो जिन्दगी आनन्द से महके।
जरा सी बात पर नाराजगी अच्छी नहीं होती।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)