बचपन
कितना सुंदर कितना प्यारा,
कितना निश्छल हैं ये बचपन ।
लाड दुलार प्रेम का सागर,
फूलों का उपवन हैं बचपन ।
डांट डपट बिन मतलब के ही
हृदय पर अंगार सी क्यों बौछार करें ।
लड़ाई झगड़ा हिंसा तुम करते
मनः स्थिति पर इनके प्रभाव पड़े ।
पढ़ाई लिखाई भी है ज़रूरी मगर
क्यों लादते जिससे बाल मन को बोझ लगे।
चारो तरफ़ यदि होगा हिंसा
मन मस्तिष्क पर कैसे शुद्ध विचार चढ़े ।
उम्र हैं जो मग्न मस्त
खुशियों की सौगात सी
शोषण से हो ग्रस्त फिर कैसे
बाल मन स्वयं का विकास करें ।
©अभिषेक पाण्डेय अभि