कहीं न कहीं
अभी एक शोर उठा है कहीं
कोई खामोश सा हो गया है कहीं।
हुआ कुछ ऐसा जैसे ये सब कुछ
इससे पहले भी हो चुका है कहीं ।।
क्या हुआ है तुझे, भूलता है चीजों को
रखता है कहीं और ढूंढता है कहीं ।
जो यहां से कहीं भी नहीं जाता था
वह यहां से चला गया है कहीं ।।
समशान की बू आ रही है यहां
क्या आसपास जल रहा है कोई
हम किसी के नहीं इक जहां के सिवा
ऐसी वह खास बात, क्या यहां है कहीं?
मैं तो अब किसी शहर में नहीं
क्या मेरा नाम अभी भी लिखा है कहीं?
किसी कमरे से कोई होकर के विदा
किसी कमरे में जाकर छुप गया है कोई।।
अभी एक शोर सा उठा है कहीं
कोई खामोश सा हो गया है कहीं।
मिल के हर शख्स से हुआ महसूस
मुझसे ये शख्स पहले मिल चुका है कहीं।।
© अभिषेक पाण्डेय अभि