कहा जाता है
कहा जाता है
मोह माया में कुछ नहीं रखा
अगले ही पल
हम मोहपाश कुछ इस तरह
जकड़ जाते हैं
सब नीरस लगने लगता है
उम्र का एक पड़ाव
ऐसा भी होता है
जब, मन की उलझन
और नज़र का धुंधलापन
मिलकर अजीब माया रचते हैं
जहाँ सपने हताश लगते हैं
हक़ीक़त की मार से
तब प्रेम की अनुभूति
संजीवनी का कार्य करती है
और, प्रेम मिलता नहीं
फ़िर,
वही नीरसता, वही अकेलापन
पुरानी यादें, खोया क्या
पाया क्या का अंकगणित
फ़िर वही मोह, वही माया
ये तिलिस्म यूँ ही बना रहता है
उम्र गुज़रती रहती है…
हिमांशु Kulshrestha