कहाॅं चली गई छोड़ कर तू !
कहाॅं चली गई छोड़ कर तू !
कहाॅं चली गई छोड़ कर तू ,
क्यों गई मुझ पर बिफर तू ,
कुछ तो होती लगाई अकल तू,
ना करती मुझे इतनी विकल तू,
आ जाओ ना ! आ जाओ ना!!
कुछ बातें दफ्न दिलों में होती हैं ,
किसी को जल्द न समझ आती है ,
संपूर्ण जीवन यूॅं ही गुजर जाती है ,
बात दिल में ही दफ्न रह जाती है!!
जीने का नज़रिया सबका ही अलग है,
दिल मे दबी आग कभी जाती सुलग है,
क्या यूॅं ही कभी शोर मचाता खग-विहग है ?
पंछी के चहचहाने का भी तो कुछ मतलब है!!
तो फिर इंसानों के हर रास्ते क्यों अलग हैं ?
छोटी-छोटी बातों पे वे क्यों जाते भड़क हैं ?
क्यों नहीं हर इंसाॅं के सपनों में होते महक हैं?
क्यों नहीं एक ही साथ हॅंस पड़ते ये जग हैं ??
भले परिस्थतियाॅं लाचार कर देती हों उनको !
हर मोड़ पे ही सीखनी चाहिए, कुछ सबको !
भरोसा अपनों पे रखके , याद करें ईश्वर को !
तो क्यों किसी कलह को देखना पड़े जग को!!
ज़ालिम है ज़माना , नहीं इसे तूने पहचाना !
कहाॅं-कहाॅं भटकेगी तू, लौट के चली आना !
ज़िंदगी की राहों पे बन जाता कभी फ़साना !
कहाॅं चली गई छोड़ के तू, जल्द ही चली आना!!
मेरी बातों को ना ठुकराना,आ जाना! आ जाना!!
© अजित कुमार कर्ण
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