Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Feb 2019 · 2 min read

कहानी

एक बार फिर

मौसम की ठंडी फुहार और क्यारी में खिले पीले फूल आज फिर मन के दरीचों से अतीत की स्मृति ताज़ा करने पर आमादा हो गए हैं। गोधूलि की बेला में फिर कोई पागल बादल झूमकर बरसने को आतुर है। बदली की ओट में छुपा चाँद एक बार फिर कॉलेज के दिनों की याद दिला रहा है। बरसों बीत गए शशांक से मिले पर आज भी यूँ लगता है जैसे वो इन पीले फूलों के बीच मेरे आस-पास मौज़ूद है।

कॉलेज में फ्रैशर्स पार्टी के दिन मेरे विनर घोषित होने पर अंत तक बजने वाली उसकी तीन तालियों की गूँज और आकर्षक, मोहिनी सूरत मेरे ज़हन में कब समा गई , कुछ पता नहीं चला। वो मुझसे एक साल सीनियर था।इसलिए अक्सर हमारी मुलाकात कैंटीन में हुआ करती थी। मेरी मृगनयनी आँखों में अपनत्व से झाँक कर शायराना अंदाज़ में जब वो कहता-
“आँखें साक़ी की जब से देखी हैं हमसे दो घूँट पी नहीं जाती ”
तो नज़रों से छू लेने वाला उसका मीठा अहसास मेरे दिल के तारों को झंकृत कर देता और मैं नाराज़गी ज़ाहिर किए बिना लजाकर मुस्कुरा देती। मुलाकात का ये सिलसिला चलता रहा।
कॉलेज के दिनों में जूही के पीले फूलों की बेल के नीचे देर तक बैठे प्यार के सपने सँजोते, गुनगुनाते हुए हमने न जाने कितने पल एक साथ गुज़ारे थे। क्लास बंक करके फिल्म देखने जाना ,मुच्छड़ के गोल-गप्पे खाना, प्यार की अनुभूति में सराबोर हाथों में हाथ लिए दूर तक निकल जाना, बादलों की ओट में छुपे चाँद को देखकर शशांक का मुझे बाहों में भरना और मेरे शरमाने पर ये गुनगुनाना-
“चाँद छुपा बादल में शरमा के मेरी जाना
सीने से लग जा तू बल खाके मेरी जाना
गुमसुम सा है, गुपचुप सा है, मदहोश है, ख़ामोश है, ये समाँ, हाँ ये समाँ कुछ और है।”
बारिश में भीगने से बचने के लिए मेरी चुन्नी में फिर मुँह छिपाना जैसे रोज़ की दिनचर्या बन गए थे।

देखते-देखते दो साल पलक झपकते निकल गए। शशांक बी.सी.ए.क्वालीफाइड करके बैंगलोर चला गया और सालभर बाद पापा के न रहने पर मैंने कई कंपनीज़ में नौकरी के लिए एप्लाई किया। हैदराबाद में जॉब लगने पर दिल की हसरतों को यादों में कैद किए, मैं माँ को लेकर यहाँ चली आई। यौवन की दहलीज़ पर खड़े हुए, मन के सूने आँगन में अतीत के पहले सावन सा गुनगुनाते हुए तुम्हें आज एक बार फिर इन पीले फूलों में महसूस कर रही हूँ।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी, (उ. प्र.)
संपादिका- साहित्य धरोहर

Language: Hindi
1 Like · 284 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
प्रदीप छंद
प्रदीप छंद
Seema Garg
जिस भी समाज में भीष्म को निशस्त्र करने के लिए शकुनियों का प्
जिस भी समाज में भीष्म को निशस्त्र करने के लिए शकुनियों का प्
Sanjay ' शून्य'
गुरु गोविंद सिंह जी की बात बताऊँ
गुरु गोविंद सिंह जी की बात बताऊँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खुशबू चमन की।
खुशबू चमन की।
Taj Mohammad
4694.*पूर्णिका*
4694.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
I love you
I love you
Otteri Selvakumar
अंतहीन
अंतहीन
Dr. Rajeev Jain
कितने ही रास्तों से
कितने ही रास्तों से
Chitra Bisht
"आज का दुर्योधन "
DrLakshman Jha Parimal
ये बात पूछनी है - हरवंश हृदय....🖋️
ये बात पूछनी है - हरवंश हृदय....🖋️
हरवंश हृदय
"पूनम का चांद"
Ekta chitrangini
ताकि अपना नाम यहाँ, कल भी रहे
ताकि अपना नाम यहाँ, कल भी रहे
gurudeenverma198
रामचरितमानस
रामचरितमानस
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
रमेशराज के दस हाइकु गीत
रमेशराज के दस हाइकु गीत
कवि रमेशराज
तुम्हारा मेरा रिश्ता....
तुम्हारा मेरा रिश्ता....
पूर्वार्थ
जल संरक्षण बहुमूल्य
जल संरक्षण बहुमूल्य
Buddha Prakash
लोग तो मुझे अच्छे दिनों का राजा कहते हैं,
लोग तो मुझे अच्छे दिनों का राजा कहते हैं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मीठे बोल
मीठे बोल
DR ARUN KUMAR SHASTRI
అతి బలవంత హనుమంత
అతి బలవంత హనుమంత
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
"मानद उपाधि"
Dr. Kishan tandon kranti
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Price less मोहब्बत 💔
Price less मोहब्बत 💔
Rohit yadav
महिला दिवस
महिला दिवस
Dr.Pratibha Prakash
बाहर से खिलखिला कर हंसता हुआ
बाहर से खिलखिला कर हंसता हुआ
Ranjeet kumar patre
अगर आपके पास निकृष्ट को अच्छा करने कि सामर्थ्य-सोच नही है,
अगर आपके पास निकृष्ट को अच्छा करने कि सामर्थ्य-सोच नही है,
manjula chauhan
D
D
*प्रणय*
तेजधार तलवार से, लड़कियों के चक्कर से, जासूसों और चुगलखोर से
तेजधार तलवार से, लड़कियों के चक्कर से, जासूसों और चुगलखोर से
Rj Anand Prajapati
समय की कविता
समय की कविता
Vansh Agarwal
दोहा -
दोहा -
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
बीते कल की क्या कहें,
बीते कल की क्या कहें,
sushil sarna
Loading...