कहानी
वो स्वाभिमान ही क्या..
जो रेत सा फिसल जाए
वो परखती धूप ही क्या
जो तन को न जलाये…
हार नहीं पर यूं जाना है
परचम अभी लहराना है
भारी नहीं लगती ये ईंटे
सर उठा के जीना सिखाना है..
बल्कि मीठी है वो हमको
मेहनत की रोटी बहुत..
नहीं दया का अवलम्बन दो
नहीं कहो कि कमज़ोर हैं
एक नयी पीढ़ी बनानी है…
क्योंकि पुरानी लोग भूल गए
याद उनको फिर से दिलाना है
एक नया फल्सफा सिखाना है
भीख में मिलती नहीं ज़िन्दगी
कमाकर बड़ी मेहनत से पहले
बूँद बूँद सहेजना एक सपना
फिर वो पूरी कहानी होती है..
जिसने इतिहास लिखा है
अपने खून पसीने से
सींचा है नयी फसल को
अपने बुलन्द इरादो से..
और वो दिन आएगा जल्दी
जब ये इंसान चलना सीखेगा
और एक नयी दुनिया होगी
जिसमे कदर होगी उसकी..
लिखनी है एक नयी इबारत
कहानी नयी इतिहास बने जो
और रचने को उसको…
चाहिये ताकत विचारों में
कह देंगे हम सूरज से
तू हौसला मत नाप मेरा
मेरी कहानी एक दिन
तेरी ज़ुबानी सुनी जायेगी..
हिम्मतों की टोकरी में भरने को
सूरज अभी बाकी है
शाम अभी हुई कहाँ
नापने को पूरा आसमां बाकी है