कहानी सांझा काव्य संग्रह की
कहानी सांझा संग्रह की
आओ सुनाऊं एक कहानी
न तेरी न मेरी सभी की ज़ुबानी
सभी की आप बीती, नहीं ये पुरानी
हां, ये है अनुभव से प्राप्त
एक संग्रह की कहानी
साहित्य को समेटा है जिसने
कलमकारों को भ्रमित किया है जिसने
कहकर सांझा काव्य संग्रह है ये जी
मगर सच्चाई कुछ और है ये जी
सांझा काव्य संग्रह… सांझा होता है
सांझी जैसे एक छत और चूल्हा होता है
मगर हममें से कुछ ऐसे भी होते हैं
जिनको बस पैसों से मतलब होता है
चलो, अब चलते है आगे के अनुभव पर
कहते हैं ये जी… बस 900 से होगा न कम
कलमकार की कलम और पैसा भी लेना है
बदले में कहते हैं, फ्रेम प्रमाणपत्र भी देना है
मगर ऐसा नहीं मित्रों…
ये कहकर कलमकारों को
सिर्फ़ भ्रम ही देना है ।
कलमकार ने पूरी मेहनत अब कर डाली
शोध के साथ – साथ रचना भी लिख डाली
मगर मांग आगे और ये अब आई है
अख़बारों में छपवानी है ख़बर ये सारी
ये काम भी कलमकारों ने कर डाला
पैसा भी पहुंचाया, ख़बर भी छपवाई
खबर भी क्या वो बताया गया था
जो लिखना था , लिखकर पहुंचाया गया था
देखो जी देखो अब आगे हुआ क्या ?
यहां पर शुरू होती है धोखेबाजी…
क्या कहें?
संकलन करने वाले का पलड़ा था भारी
न धन ही लगाया, कलम न चलाई
मगर श्रेय और ख्याति उसने पूरी थी पाई
अब सुनो मित्रों आगे की कहानी
मोमेंटो की चाह जिसको भी है जरूरी
चलो अब दे दो कुछ पैसे अधिक भी
फिर दिया जाएगा मोमेंटो तुम्हें भी
अभी आगे… ये किसको पता था
झूठा वो वादा जो कलमकार से किया था
मोमेंटो की राशि के आगे तो देखो
प्रमाणपत्र को फ्रेम नहीं अब किया था
दिखाकर एक काग़ज़ के टुकड़े को हमको
कहा अब भेजना सिर्फ बाकी है इसको
मन दुखी भी हुआ देख उसका स्वरूप
नाम जो दिखा अंतिम पंक्ति में मायूस
अनुभव ये पहला जो ऐसा मिला था
कलमकार को पूरा श्रेय न मिला था
ये देख सबको ये ही लगा था
चकाचौंध की सारी दुनिया दीवानी
सरलता का नामो निशा न मिला था
सतक रहें, सुरक्षित रहें
डॉ नीरू मोहन ‘ वागीश्वरी ‘