कहानी लिखूँगी
कांपते हाथों से मेरे देश की कहानी लिखूँगी,
इन राजनेताओं का खून हुआ पानी लिखूँगी।
फ़ौजी हर रोज़ शहीद हो रहे हैं वहाँ सीमा पर,
फ़ौजियों के नाम पर हो रही बेईमानी लिखूँगी।
दोहरी मार मारते हैं ये नेता किसानों को हर बार,
गलत नीतियों से तबाह कर दी किसानी लिखूँगी।
छप्पन भोग चाहिए नेताओं को अपनी थाली में,
किसानों की लाशों पर खाते बिरयानी लिखूँगी।
सरकारी नौकरी घटाते जा रहे हैं साल दर साल,
बेरोजगारी मेरे देश की मैं प्रमुख निशानी लिखूँगी।
थमा कागज की डिग्री कहते हैं शिक्षित बना दिये,
रोजगार मिले ऐसा ज्ञान न देना, नादानी लिखूँगी।
हर चीज को वोटों के नजरिये से देखने लगे नेता,
राजनीतिक पार्टीयों को सत्ता की दीवानी लिखूँगी।
लोग खुद बिककर दोष देते हैं मेरे देश के तंत्र को,
घूस देकर भ्रष्टाचार करके बने खानदानी लिखूँगी।
लाल बहादुर, सरदार पटेल जैसे अब नेता चाहिए,
आज़ाद, भगत सिंह जैसी चाहिए जवानी लिखूँगी।
कोशिश करती रहती जो सोए हुए को जगाने की,
बहलम्बे वाली उस “सुलक्षणा” को मर्दानी लिखूँगी।
©® डॉ सुलक्षणा