कहानी- दोस्ती या प्यार
—————-दोस्ती या प्यार—————————-
—————–अधूरी प्रेम कहानी——————
सुमन और सुमित दोनों हम उम्र थे।दोनों एक ही मोहल्ले में पले बढे।एक ही विद्यालय में सहपाठी रहते हुए परस्पर कड़ी प्रतिस्पर्धा देते हुए प्रत्येक कक्षा में पहले दो स्थानों पर काबिज रहते जैसे ये पहले ये दोनों सोपान स्वयं के लिए सदैव आरक्षित कर लिए हों ,किसी में सुमित प्रथम तो किसी में सुमन। लेकिन दोनों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा थी।एक दूसरे के अच्छे सहयोगी होते हुए इकट्ठे आते जाते और एक दूसरे की मुश्किलात में सहायता करते तथा हंसी ठिठौली करते। विद्यालय में अध्यापकों के प्रिय विद्यार्थी भी। दोनों घर के पड़ौसी होने के नाते एक साथ खेलते और एक दूसरे के घर भी आते जाते।सुमन चहाँ चंचल और नटखट स्वभाव के कारण गंभीर बात भी हंसी- हंसी अंजाने में स्पष्ट की कह जाती,वहीं सुमित गभीर और शर्मीले स्वभाव का होने के कारण कुछ प्रतिउत्तर में कुछ ना कह पाता और हल्के में अनसुनी सी कर देता। धीरे – धीरे दोनों एक साथ बढते-पढते हुए बारहवीं कक्षा तक आ गए और दोनों ने वार्षिक परीक्षा की तैयारी भी एक साथ करते।लेकिन दोनो जवानी के प्रथम सोपान पर थे। शारीरिक परिवर्तन के साथ दोनों के स्वभाव और रहन-सहन एवं तौर-तरीकों में भी परिवर्तन आ गया था।जवानी कहाँ अपनी होती है, यह तो खुद को खुद से अलग-थलग कर देती है और संभलने का अवसर भी नहीं देती हैं।वो भी इंसानी जीव होने के कारण कैसे बच सकते थे।एक अजीब सा खींचाव और आकर्षक महसूस करते लेकिन एक दूसरे को महसूस नही होने देते पैदा हूए मन अंदर प्रेम भाव एवं प्रेम बीज को ।वो कहते हैं ना एक बार कोई भी बीज अंकुरित हो जाए तो पूर्ण पौधा बन कर ही दम लेता है।दोनों की वार्षिक परीक्षा संपन्न हुई और परीक्षा परिणाम आने पर जहाँ सुमन ने विद्यालय की बारहवीं की बॉर्ड की परीक्षा में प्रथम रही वहीं सुमित द्वितीय। दोनों ने सफलता पर एक दूसरे को बधाई दी और मुंह मीठा करवाते हुए सुमन ने अचानक अपना हाथ आगे बढाते हूए सुमित का हाथ अपने हाथ में लेते हुए मिला लिया।सुमित भौंचक्का रह गया और दोनों के शरीर में विपरीत लिंग आकर्षक होने के कारण बिजली के कंरट सी सिरहन पैदा हुई।और सुमित ने अपना हाथ अनचाहे मन से छुड़ाने का असफल प्रयास किया।दोनों की बोलती हुई आँखे नीचे हो गई एक मंद मधुर मुस्कान के साथ।इस बीच आगे की पढाई के लिए जहाँ सुमित का दाखिला दूसरे शहर में प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग महाविद्यालय में हो गया,वहीं सुमन का अपने शहर के महाविद्यालय में विज्ञान संकाय के प्रथम वर्ष में हो गया।इस कारण दोनों का साथ छूटा लेकिन संपर्क नहीं।मोबाइल व पत्राचार माध्यम से एक दूसरे के संपर्क में थे। कई बार तो दोनों में घंटों बाते होती और छुट्टियों दौरान मुलाकातें भी।शायद प्रैम बीज अंकुरित हो गया था।एक दूसरे की भावनाओं और मान मर्यादाओं को समझते थे और शायद मन की मन बात कंठ के पास आते ही कंठ पार ना करने के कारण मन में ही रह जाती।इस बीच दोनों ने अपनी अपनी डिग्रियां पुरी कर ली।सुमित को दूर-दराज मंगलौर शहर में निजी कंपनी में प्रतिष्ठित पद पर नौकरी मिल गई और सुमन को भी बि.एड करते ही सरकारी विद्यालय में विज्ञान अध्यापिका के पद पर सरकारी नौकरी।लेकिन दोनों अब तक दिल की बात कह पाने में असमर्थ और असहाय थे।शायद इस भंवर में फंसे थे कि पहल कौन करे और यह भी डर रहा होगा कि कोई दोस्ती का गलत मतलब ना निकाले।इस बीच घर में सुमन ने के रिश्ते की बात भी घर वालों द्वारा चलाई जाने लगी।अच्छे-अच्छे घरानों के लड़के के रिश्ते सुमन के लिए आए।माता-पिता द्वारा पूछे जाने पर वह मौन रहती।और भारतीय संस्कृति अनुसार लड़की के मौन रहने की अवस्था को स्वीकृति समझ लिया जाता है।और यही सुमन के साथ भी ऐसा हुआ।घर वालों द्वारा रिश्ते की पारित हुई बात को जब सुमन ने सुमित को अवगत कराया तो उसके पैरौं नीचे से ज़मीन खिसक गई और उसकी स्थिति ऐसी हो गई जैसे चार सौ वॉट की बिजली का झटका लगा हो।वह यह खबर सुनते ही शब्द उसके गले में अटक गए, जैसे शब्दों ने साथ देना छोड़ दिया हो…..। कुछ देर चुप रहने के साथ सुमित के सूखे गले से चार ही शब्द निकले….सुमन जी बधाई हो । जी शब्द ने जैसे दोनों को मीलों दूर कर दिया हो।प्रेम जब शब्दों का रूप लेकर अभिव्यक्त ना हो तो बहुत असहनीय पीड़ा देता हैं और पैदा करता है दिल में नासूरों को जो जिन्दा रहने तक मन-मस्तिष्क को टीसते हैं और शरीर को दीमक की तरह समाप्त खर देते हैं।सुमित अब भी दिल की बात कहने में असमर्थ और विफल रहा।प्रतिउत्तर में सुमन के सूखे-रूद्र हलक और बंद सी हुई जुबान से एक ही शब्द निकले….जी धन्यवाद और फोन काट दिया ।धन्यवाद दोनों के लिए एक औपचारिक और दूर कर देने वाला शब्द था,जिसने दोनों के अंदर सीमाओं को पैदा कर दिया था और अंजाना एवं पराया भी।औरते भारतीय संस्कृति में बहुत कम ही निज प्रेम अभिव्यक्ति में सफल हो पाती है ।और सचमन भी उनमें से एक थी।दोनों ने पहले कौन और दोस्ती खो जाने एवं भारतीय सामाजिक मान मर्यादाओं के डर से अपनी दोस्ती से भी ऊपर प्यार के भाव को सदा सदा के लिए खो दिया था और दोनों ने स्वयं को तैयार कर लिया शेष लंबा नीरस जीने के लिए…।यह उनकी अंतिम वार्तालाप थी जो दोस्ती या प्यार के द्वंद्व के साथ समाप्त हो गई थी।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाला (कैथल)