कहां था आसान
चलते चलते देखो
कहां आ पहुंची मैं,
ये लम्बा सफर, और
उस पर अनजान डगर…
तुम बिन तय करना
कहां था आसान…….
घूंघट से बाहर निकलना
अपने अस्तित्व की
खातिर लडना,
तुम्हारे साथ खड़े होना,
बराबरी की बात करना,
तुम न होते तो, मेरे लिए
कहां था आसान……
मुझे बेड़ियों में जकड़ने
वाले अगर तुम थे,
तो मेरे हक में
आवाज़ उठाने वाले
भी तो तुम थे…
भरी सभा में
वस्त्र हरण करने वाले
अगर तुम थे,
तो लाज बचाने वाले
भी तुम ही तो थे….
मेरा सफ़र तो
अभी जारी है
और छूना है मुझे
ये सारा आसमान,
तुम यूं ही
साथ चलते रहना,
तभी तो होगा मेरा
ये सफ़र आसान….