कहां गई गौरैया ?
दिन बरस बीत गए ,
बीत गए महीने और साल ।
तेरे दर्शन को आंखें तरस गई,
हो गया हमारा हाल बेहाल ।
तू आए चाहे न आए ,
तेरा करते हम अब भी इंतजार ।
तेरी मीठी वाणी सुनने को ,
हम है बड़े बेकरार।
तेरे लिए जाने कितनी बार ,
रहने को रैन बसेरा बनाया ।
दाना पानी बदल बदल कर ,
हर बार ताजा रखवाया।
यही आशा के साथ के ,
तू कभी तो यहां डेरा जमाएगी।
घास फूस इकठ्ठा करके,
अपना घर बसाएगी ।
नन्हे मुन्ने चूजों की किलकारियां ,
हमें सुनने को मिलेगी ।
और तू अपनी चोंच से अपने ,
बच्चों को दाना खिलाएगी ।
कितना सुंदर वोह नजारा होगा,
देखकर जिसे मन हर्षित होगा।
जीवन की सारी कड़वाहट दूर होगी ,
जब प्रेम रस से जीवन आनंदित होगा ।
मगर यह सब ख्वाब ही है ,
ख्वाबों का क्या है यह हैं झूठे।
बल्कि सच तो यही है ,
कई ज़माने हो गए तुझे रूठे।
माना की कुछ लालची लोगों की ,
क्रूरता के कारण तेरी प्रजाति लुप्त हो गई ।
मगर इन शैतानों में कुछ इंसान भी तो है,
तू उनसे क्यों रूष्ट हो गई ?
अब आ भी जा ,
तेरा अब भी इंतजार है।
तेरी प्रतीक्षा में ,
दिल और घर का दर ,
अब तेरे लिए खुला है ।