कहाँ गया रोजगार…?
कहाँ गया रोजगार…?
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कहाँ गया रोजगार…?
खत्म हुआ रोजगार…!
बीए बीकाॅम एमए पढकर ,
होगा न अब चमत्कार।
चला गया रोजगार…!
ड्राईवर प्लंबर वेल्डर फीटर ,
सीखा न कोई हुनर औजार।
एसी कार मोबाइल मेकेनिक ,
कर न सका व्यापार।
खत्म हुआ रोजगार…!
कला की भी कोई कद्र,न की है तूने ,
ललबबूआ परिवार।
चला गया रोजगार…!
जनसंख्या अति प्रतिस्पर्धा देखो,
हुनर तुम लाओ हजार ।
सोचों यदि अविचल मन से ,
लाखों है रोजगार।
बचके रहना निठल्लों से,
भड़कायेंगे सौ बार ।
हीन भावना से ग्रसित कर देंगे ,
जैसे खुद हैं वो बेकार।
बनना है बाबू अफसर तो ,
खान सर से,लो उर्जा उधार।
नहीं तो ऐसा उद्योग लगा लो ,
जैसे झा जी का अचार…!
प्रकट होगा रोजगार…!
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०८ /०१/२०२३
माघ ,कृष्ण पक्ष,प्रतिपदा,रविवार
विक्रम संवत २०७९
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