*कहाँ गईं वह हँसी-मजाकें,आपस में डरते हैं (हिंदी गजल/गीतिका
कहाँ गईं वह हँसी-मजाकें,आपस में डरते हैं (हिंदी गजल/गीतिका )
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(1)
कहाँ गईं वह हँसी-मजाकें, आपस में डरते हैं
बड़े अदब से नाप-तोल कर ,सब बातें करते हैं
(2)
मुँह से निकला शब्द, और उसने सौ अर्थ निकाले
इस ही डर से अपने मुँह पर ,सब उँगली धरते हैं
(3)
यों तो कहीं जीभ में कोई, हड्डी कब होती है
मगर इसी से ही बोले, थोड़े शब्द अखरते हैं
(4)
हीन भावनाएँ हैं जिनके मन में डेरा डाले
बिना वजह के रोजाना, केवल वही अकड़ते हैं
(5)
सदियाँ बीतीं लेकिन फिर भी, यह अभिशाप पुराना
लोग धर्म पर जीते कम हैं, ज्यादातर मरते हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451