कहर
बार बार रहा कांप
धरा का धरातल
मच रहा है तांडव
तनाव व् विनाश का
चाँद-सितारों पर
विजय रथ
दौड़ाने वाला
जल-थल-हवा में
विजय-दुदंभि
बजाने वाला
नहीं रोक पा रहा
आज संहार
कहीं जल का
निर्मम प्रवाह
बहा ले जाता
अनेक अपने प्रिय
कही धरती निगल रही
आशियाने
आसरा देने वाले घर
बन रहे कब्रस्तान
बस हो रहा संहार
निर्मित हो रहा
दर्द और जख्मों का
संसार ।
क्या कुपित है
शिव
खोल तीसरा नेत्र
कर रहे संहार
नहीं कुछ कर पा रहा
इंसान
बस बेबस
लाचार।