कहमुकरी (मुकरिया) छंद विधान (सउदाहरण)
कहमुकरी (मुकरियाँ ) छंद विधान (सउदाहरण )
मुकरिया एक लोक छंद है, इसको आ० ‘अमीर खुसरो’ जी ने बहुत लिखा था |आ० अमीर खुसरो जी फारसी भाषा कवि / शायर थे , इसलिए उन्होनें इस छंद को फारसी शब्द से नाम दिया था |
“मुकर ” फारसी शब्द है , जिसका अर्थ है , अपनी कही गई बात को नकार देना , ना प्रत्यय लगाकर ” मुकरना ” एक क्रिया हो गई , इसी तरह इया प्रत्यय लगाकर , मुकरिया शब्द बना (मुकरने वाला ) जो एक संज्ञा है , व साहित्य में कहलाया ” मुकरने वाला छंद _ मुकरिया ,
और इनका समूह ” मुकरियाँ ” कहलाया
इसके बाद भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने भी इस पर लिखा व इसे खड़ी हिंदी में “कहमुकरी” { कहना और मुकर जाना} के नाम से प्रतिष्ठित किया है | यह अन्योक्ति रोचक छंद है , वर्तमान में कई मित्र यह छंद लिखते है |
यह चार पदों का छंद है
यह सोलह मात्राओं का चौपाई चाल छंद है | अंतिम दो पद – चौबोला छंद चाल से 15 मात्रा में , “गाल” चरणांत करके भी लिख लिखते है ,
पहेली उत्कंठा और गेयता ही इस छंद की विशेषता है।
यह छंद दो सखियों के मनोविनोद वार्ता का दृश्य उपस्थित करता है | एक सखी दूसरी सखी से तीन पदों में ऐसा चित्र बनाती कि दूसरी को लगता है कि वह बालम के बारे में बता रही है ,
लेकिन जब वह चौथे पद में स्पस्ट करना चाहती है , तब कहने वाली सहेली मुकर जाती है व दूसरी और संकेत करने लगती है ,
चौथा पद दो भागों में बँट जाता है , एक भाग में सुनने वाली सखी स्पस्ट करना चाहती है , व दूसरे भाग में कहने वाली सखी मुकर जाती है
इस लिहाज से मुकरियाँ एक तरह से अन्योक्ति हैं.
१६ मात्राओं के चार चरण , व प्रत्येक चरण के अंत में ११११, ११२,२११,२२ का प्रयोग उचित रहता है ,
किंतु गेयता ध्यान रखते हुए ” गाल” का प्रयोग तीसरे- चौथे चरण में या किसी एक चरण में भी कर सकते है , क्योंकि ” गाल” करने पर १५ मात्राएँ लय में आ जाती हैं | जो स्वीकार होती है | वस गेयता रहनी चाहिए |
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अमीर खुसरो जी व भारतेन्दु जी की कई मुकरियाँ पढ़ने पर , उपरोक्त👆 सही विधान उभरकर सामने आता है | जो मेरी समझ में आया है | मेरा कहीं कोई किसी पर संकेत आक्षेप नहीं है , कि कौन इस छंद के साथ क्या तोड़ मरोड़ कर रहा है | न तीन पदों की तुकांते उचित है , और न सत्रह मात्रा तक का प्रयोग | (अपवाद के उदाहरण से विधान नहीं बनते है )गाल चरणांत में 15 मात्रा का प्रयोग स्वाभाविक लय युक्त है | सादर
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उदाहरण –
मेरा सिर गोदी में रखता |
मुझकों भी तब अच्छा लगता |
आती नींद बड़ी ही सुखिया ,
क्या सखि बालम ? ना सखि तकिया | 1
मेरे तन का चूमें माथा |
यहाँ सुहागन बनती गाथा |
सब जाने तब मेरी हिंदी ,
क्या सखि बालम? ना सखि बिंदी |2
मेरे सिर अधिकार जमाए |
इधर उधर से वह सहलाए |
हरकत होती छोटी- मोटी,
क्या सखि साजन ? ना सखि चोटी |3
लिपटे मुझसे जगती सोती |
आबाजों की प्रस्तुति होती |
मैं भी होती उसकी कायल ,
क्या सखि प्रीतम ? ना सखि पायल |4
कमर घेरकर मुझ से लिपटे |
कभी न हम वह रहते छिटके |
उसको पाकर दिखूँ सलोनी ,
क्या सखि बालम? ना करधौनी |5
उसे देखकर मन भी हँसता |
मेरा मुख उससे जब लगता |
बने रसीली वहाँ भी थाम –
क्या सखि साजन ? ना सखि- आम |6
पाने उसको खुद में जाती |
छूकर उसको मैं हरसाती |
शीतल होती तन की नगरी,
क्या सखि बालम ? ना सखि गगरी |7
बीच राह में छेड़े मुझको |
जैसे कहता जानू तुझको |
घूँघट पलटे दिखे अधीर ,
क्या सखि साजन? ,न सखि समीर |8
हँसता रहता हरदम हिलकर |
अच्छा लगता उससे मिलकर |
करें प्रशंसा मेरे गुन का ,
क्या सखि साजन ? ना सखि -झुमका |9
मुझ पर अपनी धाक जमाई |
रँग की ताकत भी दिखलाई |
खुश्बू देकर भी हद कर दी ,
क्या सखि बालम ? ना सखि मेहँदी |10
गहन निशा में हमें सुलाता |
नरम -नरम अहसास कराता |
स्वप्न दिखाता सुंदर कल का ,
क्या सखि साजन ? ना सखि पलका |11
मैं सोती जब निकट रहे वह |
मेरे ऊपर नजर रखे वह |
मुझको देता हरदम आदर |
क्या सखि बालम ? ना सखि -चादर |12
रहे नैन में सदा हमारे |
तिरछी चितवन भी वह ढ़ारे |
मैं भी उसको रखती हर पल ,
क्या सखि साजन ? ना सखि काजल |13
रखता है वह हमसे नाता |
हमको भी वह बहुत सुहाता |
देता रहता चुम्बन अंकुर ,
क्या सखि साजन ? ना सखि सेंदुर |14
हमको अपने पास बुलाता |
मीठी बातों से भरमाता |
वादे भी वह सुंदर देता ,
क्या सखि साजन ? ना सखि -नेता |15
देता हमको है मुस्काने |
करे इशारा पास बुलाने |
मेरे अरमानों को खेता ,
क्या सखि बालम ? ना सखी -नेता |16
पास सदा वह जब भी आता |
धीमी सीटी कान बजाता |
लिखे खून से वह भी अक्षर ,
क्या सखि साजन ? ना सखि- मच्छर |17
जब भी मिलती वह बिठलाता |
मुझको पूरे भाव सुनाता |
आती उसको दुनियादारी ,
क्या सखि प्रीतम? , न सखि -पंसारी |18
मेरी पकड़े सदा कलाई |
कहता मुझसे करूँ भलाई |
मुख को देखे सदा खासकर ,
क्या सखि प्रेमी ? ना सखि -डाक्टर |19
जब भी जाती हाथ पकड़ता |
अपने हाथों उन्हें जकड़ता |
शृंगार करे हाथों का घेरा ,
क्या सखि प्रीतम? न सखि -लखेरा |20
मेरे आकर होंठ रचाता |
मैं मुस्काती – वह मुस्काता |
उसके गुण लख – मैं हैरान ,
क्या सखि साजन ? ना सखि -पान |21
मन में बसकर हाथ जकड़ता |
शोर करें वह जहाँ भिनकता |
सजी सेज पर- दे अपनापन ,
क्या सखि साजन ? ना सखि कंगन |22
जब वह मुझको निकट बुलाता |
अपनी गर्मी सब दे जाता |
कहता कभी न होगा भूला ,
क्या सखि बालम ? ना सखि चूला |23
ध्यान पैर का रखता हरदम |
संग घूमता बनकर सरगम |
करे सुरक्षा रखता अक्कल –
ऐ री साजन? नाँ री चप्पल |24
हर पल का वह ज्ञान कराए |
समय मूल्य का बोध सुनाए |
देखूँ उसको मैं बैठ खड़ी –
ऐ री बालम ? नाँ री घड़ी | 25
करता छाती से रँगदारी |
उस बिन आती है लाचारी |
नहीं मिलै तो भारी आँसें –
का री साजन ? नाँ री साँसें |26
उस बिन मैं भी अकुलाती |
जब दिख जाता मैं मुस्काती ||
हाथ पकड वह सँग में लेटा –
ऐ री बालम ? नाँ री बेटा |27
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आ० भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने , इस विधा में दूसरे चित्र भी खींचें , जिसका तात्पर्य है कि –
ऐसा भी नहीं है कि हर चित्र बालम साजन का खींचा जाए , किसी का भी खींचा जा सकता है , पर संवाद दो के मध्य रहेगा , मेरी निम्न मुकरिया देखें –
ऊधम करने घर में आता |
घर वालों को बहुत सताता |
फैलाता है घर में कूरा –
क्या है बच्चा ? ना ना धूरा |
मूँछें ताने अपनी आते |
आकर सब पर धौंस जमाते |
खर्चा होती घर की नकदी –
यहाँ दरोगा? ना ना समदी |
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यह आपने देखा होगा कि कभी – कभी हम आप भी बात कहते- कहते ,जब ऐसा लगता कि यह नहीं कहना चाहिए था , तब तत्काल पलटी मार लेते है , यह भाव भी मुकरियों में ला सकते है , जैसे
चले चलें हम तेरे संगे |
जिधर फँसे है सब अड़बंगे |
सब होगें काम तरीछे से –
क्या तुम आगे ? ना पीछे से |
उपरोक्त 👆 में आप देखें कि साथ चलने वाला , किस तरह पलटी लेकर ( मुकर ) गया व आगे की जगह पीछे चलने लगा | क्योंकि उसे कहते – कहते अहसास हो गया कि हम कुछ अधिक बोल रहें है , समस्या आ सकती है मुझे |
इसी तरह यह दूसरा 👇
तुम मत उससे बिल्कुल डरना |
कुछ बोले तब मेरी कहना |
बात न करना शीष झुकाकर |
क्या लड़ बैठै ? नाँ समझाकर |
उपरोक्त में कितना हौसला दिया जा रहा था , पर जब लड़ाई करने की पूछी तब , पलट गया व समझाने की बात करने लगा |
सुभाष सिंघई
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©®सुभाष सिंघई , जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०
विशेष निवेदन – कहीं वर्तनी दोष , विधानुसार मात्रा घट बढ़ हो तब परिमार्जन भाव से पढ़े 🙏
©®सुभाष सिंघई , जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०
बुंदेली_मुकरियाँ
जब हम पकरै बौ झुक जाबै |
अपने मन कौ रस लुड़काबै |
मौखौ लगबै हल्कौ छैला-
का री बालम ? नाँ री घैला |
मौरी मुड़िया ओली रखता |
तन मन खौं तब नौनों लगता |
निदिया आती बनती सुखिया ,
ऐ री बालम ? नाँ री तकिया |
चमक दमक है जैसे मोती |
मैं भी लख कै उसमें खोती |
हौ जाती मैं ऊकी कायल ,
ऐ री प्रीतम ? नाँ री पायल |
मौरी मुड़िया हाथ लगाए |
ऊकै संगै खिल कै भाए |
मटकत संगै हरकत छोटी –
का री साजन ? नाँ री चोटी |
करयाई से आकै लिपटो |
दूर न भगबै यैनइ चिपटो |
मौखों गुइयाँ लगौ सलोना –
ऐ री बालम? नाँ -करदौना |
उसकी जब जब परै जरुरत |
होती पूरी मौरी हसरत |
शीतल होती तन की नगरी,
ऐ री बालम ! नाँ री गगरी |
बहुत तँगाबै आकै मुझको |
जैसे कहता जानू तुझको |
घूँघट पलटे दिखे अधीर ,
ऐ री साजन ,नाँ री समीर |
दाँत निपौरे हरदम हिलकर |
नौनों लगतइ ऊसै मिलकर |
दयँ कानन पै पूरौ धमका –
ऐ री साजन ? नाँ री -झुमका |
मौपै अपनी धौंस जमाई |
रँग की ताकत भी दिखलाई |
खुश्बू देकर भी हद कर दी ,
का री बालम ? नाँ री महँदी |
अँदयारे में हमें सुलाता |
लगत गुलगुलो हमें सुहाता |
स्वप्न दिखाता सुंदर कल का ,
का री साजन ? नाँ री पलका |
मैं सोती तब लेंगर रहता |
मौरे ऊपर. नेह परसता ||
मुझको देता हरदम आदर |
ऐ री बालम ? नाँ री -चादर |
रयै नैन मे सदा हमारे |
तिरछी हेरन. भी वह ढ़ारे |
मैं भी उसको रखती हर पल ,
का री साजन ? नाँ री काजल |
राखत मौसे पूरा नाता |
मौखौं भी वह भौत सुहाता |
देत मुड़ी सैं अपनौ अंकुर –
का री साजन ? नाँ री सेंदुर |
दोरे आकैं हमें बुलाता |
मीठी बातों से भरमाता |
वादे भी वह सुंदर देता ,
का री साजन ? नाँ री -नेता |
मुड़ी हिला कै दै मुस्काने |
कातइ तत्पर साथ निभाने |
मेरे अरमानों को खेता ,
का री बालम ? नाँ री -नेता |
नेंगर जाती वह. बिठलाता |
अपने पूरे भाव सुनाता |
आती उसको दुनियादारी ,
क्या प्रीतम ? , नाँ री -पंसारी |
मेरी पकरै हात कलाई |
कहता तौरी करूँ भलाई |
मुइयाँ तकबै सदा खासकर ,
का री प्रेमी ? नाँ री -डाक्टर |
जब भी जाती कौंचा पकरै |
ऐसौ लगतइ जैसे दुचरै |
शृंगार करे हाथों का घेरा ,
का री बालम ? नँ री -लखेरा |
मौरे आकै होंठ रचाता |
मैं मुस्काती – वह मुस्काता |
उसके गुण लख – मैं हैरान ,
का री साजन ? नाँ री -पान |
मन में बसकर हाथ जकड़ता |
शोर करें वह जहाँ भिनकता |
चार जनन में -दे इज्जत पन ,
का री साजन ? नाँ री कंगन |
लेंगर मुझको सदा बुलाता |
तन की गर्मी हमें बताता |
कहता मैं कब तुमको भूला ,
का री बालम ? नाँ री चूला |
ध्यान रखत मौरे गौड़न कौ |
संग दैत है अपनेपन कौ |
करत सुरक्षा राखे अक्कल –
ऐ री साजन? नाँ री चप्पल |
सदा समय कौ ज्ञान कराए |
कितनी कीमत बोध सुनाए |
देखूँ उसको मैं बैठ खड़ी –
ऐ री बालम ? नाँ री घड़ी |
करता छाती से रँगदारी |
उस बिन आती है लाचारी |
नहीं मिलै तो भारी आँसें –
का री साजन ? नाँ री साँसें |
उस बिन मैं भी अकुलाती |
जब दिख जाता मैं मुस्काती ||
हाथ पकड वह सँग में लेटा –
ऐ री बालम ? नाँ री बेटा |
सुभाष सिंघई