कहमुकरियाँ हिन्दी महीनों पर…
१-
वो आए तो आए बहार।
मौसम पे छा जाए निखार।
देख उसे हो शीत नपैत।
क्या सखि साजन ? ना सखि चैत।
२-
नया उछाह, नवजीवन लाता।
साथ सभी के घुलमिल जाता।
घटती कभी न उसकी साख।
क्या सखि साजन ? ना वैशाख।
३-
आग बबूला सदा वह रहता।
पारा दिनभर चढ़ा ही रहता।
गरम मिजाज हठीला ठेठ।
क्या सखि साजन ? ना सखि जेठ।
४-
राहत का संदेशा लाए।
अब्र सा तपते मन पर छाए।
संग लाए खुशियों की बाढ़।
क्या सखि साजन ? ना आषाढ़।
५-
तन-मन का वह ताप मिटाए।
उस बिन अब तो रहा न जाए।
जाने कहाँ छुपा मनभावन।
क्या सखि साजन ? ना सखि सावन।
६-
नेह-वारिधि खींच वह लाता।
उमड़-घुमड़ फिर बरसा जाता।
अता-पता कुछ ? तुम्हीं बता दो।
क्या सखि साजन ? ना सखि भादो।
७-
राहें मुश्किल सुगम बनाए।
आ पपिहे की प्यास बुझाए।
शरद-चाँदनी छिड़के द्वार।
क्या सखि साजन ? ना सखि क्वार।
८-
उत्सव कितने संग वो लाए।
घर-आँगन में रौनक छाए।
मीठी लागे वा की झिक-झिक।
क्या सखि साजन ? ना सखि कातिक।
९-
सूरत- सीरत सबमें न्यारा।
माधव को भी है अति प्यारा।
नाम से उसके होय सिहरन।
क्या सखि साजन ? ना सखि अगहन।
१०-
थर-थर काँपे माँगे प्रीत।
बड़ी अनूठी उसकी रीत।
जाता लिए बिना ना घूस।
क्या सखि साजन ? ना सखि पूस।
११-
संग लेकर आता मधुमास।
जगाता काम बढ़ाता प्यास।
निपट निर्मोही मन का घाघ।
क्या सखि साजन ? ना सखि माघ।
१२-
सुखद नज़ारे लेकर आए।
उड़ा गुलाल हृदय रंग जाए।
गुन में उसके छिपे हर अवगुन।
क्या सखि साजन ? ना सखि फागुन।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )