कहने को हमसफ़र हैं!
कहने को हमसफर हैं!
कहने को हमसफर हैं
कहने को चलते एक डगर हैं
लेकिन मंज़िल जुदा – जुदा है
ये अंजाम है मरासिम का या फिर कोई इबतेदा है l
कहने को हमसफर हैं
कहने को एक ही छत तले बसर हैं
लेकिन मिज़ाज़ जुदा – जुदा है
ये इत्तेफाक है या फिर वक़्त की कोई अदा है l
कहने को हमसफर हैं
कहने को मोहब्बत के आसमाँ के अबर हैं
लेकिन शख्सियत जुदा जुदा है
ये जुल्म है हसीन या फिर कोई बदला बख़ुदा है l
कहने को हमसफर हैं
कहने को इक दूजे के शजर हैं
लेकिन किस्म जुदा जुदा है
ये साज़िश है नूरानी या फिर कोई सज़ा है l
कहने को हमसफर हैं फकत बस कहने को!
सोनल निर्मल नमिता