कहने को तो ज़िंदा हूँ
कहने को तो ज़िंदा हूँ
बिन पंखों के उड़ता परिंदा हूँ
कुछ दिखाई नही देता है मुझे
मैं तेरे इश्क़ में आँख वाला अंधा हूँ
नींदों का हिसाब हो गया है कब से
जब से तुमसे दिल का किया धंधा हूँ
तुम आज बता भी दो
आखिर कब बतलाओगी
निगाहों से इशारे करोगी
या पायल भी छमकाओगी
इतनी कातिल नजरो से देखती हो क्यों
क्या आज मेरा कत्ल कर जाओगी
मेरे होने से पूरी होती हो तुम
ये कब अपने दिल को बतालाओगी
खत को पूरा पढ़ने का इरादा है
या बिन पढ़े फाड़ जाओगी
अपने बगीचे का फूल
क्या तुम मेरे कब्र पर चढाओगी-अभिषेक राजहंस