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30 Nov 2021 · 1 min read

कहने को तेरा

कहने को तेरा हुस्न ज़माने के लिए है
तू सिर्फ हसीं ख़्वाब सजाने के लिए है

हर सुब्ह तुझे भूलने की सोच रहा हूँ
हर शाम तेरी याद दिलाने के लिए है

प्यासा रहा ताउम्र समन्दर के किनारे
इक बूँद नहीं प्यास बुझाने के लिए है

मतलब की दोस्ती है सियासत के शह्र में
वादा भी कोई चीज़ निभाने के लिए है?

उतना ही उभरता गया जितना कि दबाया
कहते वो रहे राज़ छुपाने के लिए है

महफ़िल में सरे शाम ‘असीम’ आपका आना
ग़ज़लों में रवानी को बढ़ाने के लिए है

– शैलेन्द्र ‘असीम’

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