कहने को तेरा
कहने को तेरा हुस्न ज़माने के लिए है
तू सिर्फ हसीं ख़्वाब सजाने के लिए है
हर सुब्ह तुझे भूलने की सोच रहा हूँ
हर शाम तेरी याद दिलाने के लिए है
प्यासा रहा ताउम्र समन्दर के किनारे
इक बूँद नहीं प्यास बुझाने के लिए है
मतलब की दोस्ती है सियासत के शह्र में
वादा भी कोई चीज़ निभाने के लिए है?
उतना ही उभरता गया जितना कि दबाया
कहते वो रहे राज़ छुपाने के लिए है
महफ़िल में सरे शाम ‘असीम’ आपका आना
ग़ज़लों में रवानी को बढ़ाने के लिए है
– शैलेन्द्र ‘असीम’