कहना ही है
कई बातें कहते-कहते
कही तो रूक गया था !
यूं ही बतियाते-बतियाते
कभी तो थक गया था !
ये झेप-झिझक के चलते
सही में ही झुक गया था !
यूं तो सच्चाई के वास्ते
सच के दर तक गया था !
पर कसौटियों के आगे
थोड़ा लड़े ही थक गया था !
अब हरहाल बात रखी जाए
चाहे मेरी हस्ती ही मिट जाए !
ये बात कही मिट न जाए
ये विचार सिमट न जाए !
जो फिजां में गूंजनी चाहे
वो हलक में अटक न जाए !
ये बात कहने से पहले
कही जुबां लटक न जाए
थी बड़ी अजीब उलझन
यह बात समझ न आए !!
बिना बोले तो बात भी
निर्वात में बेबात बन जाए !
यूं अंगारों पे चलते-चलते
यूं कब तक जलना होगा !
ये सब सहते-सहते क्यों
जुबां बंद कर रहना होगा !
ये फतवे,फरमान,आदेशों को
क्यों न कुछ कहना होगा !
कहर ढहाने को ही अब
बेड़ियों को कटना ही होगा !
ये ज्वालामुखी फट कर
लावा तो बहना ही होगा !
क्यों ये राज,राज ही रहे
अब तो कहना ही होगा !
झूठे को हरा कर ही तो
सच्चे को ही जीतना होगा !
सुन सूनेपन में न बीता जीवन
तुझे बोलते ही बीतना होगा !
( ए जिंदगी एक्सप्रेस योरसेल्फ )
मौलिक,स्वरचित -रचना संख्या-०३
~०~
जीवनसवारो,दी बॉयोफिलिक,मई २०२३