कहना क्या
कहना क्या
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प्रेम में कहना क्या
चुप रहना क्या….
आँखों में कैद हैं कई सावन
मन ने पाले पीड़ा क्रंदन
दूरियां नजदीकियां के
नए बंधन
दूर क्षितिज तक बिखरे दर्द
अनुभूति कहे
अब सहना क्या …..
बन बैठी मैं खुली किताब
पढने को थे तुम बेताब
मेरा बदन ढला गीत में
डूबी प्रकृति संगीत में
झंकृत हुए मन के तार
पनपा यूँ पहला प्यार
कानों में कोई कहता है
तेरे बिना
अब रहना क्या ….
पलकों में बंद हैं तेरे ख्वाब
समर्पण मांगे कोई जवाब
अन्दर उठती एक छोटी लहर
होटों पर आई बन सैलाब
कर लो मुझको मुट्ठी में बंद
बिंदास हवा सा
अब बहना क्या …. ।
– अवधेश सिंह