कहते हैं मृत्यु ही एक तय सत्य है,
कहते हैं मृत्यु ही एक तय सत्य है,
मिल ही जाएगी,
ज़िन्दगी कब मिलेगी कुछ पता है क्या?
और ये छाले कैसे पड़ गये तुम्हारे पैर में,
मेरे दोस्त,
किसी की उम्मीदों पर चल दिये थे क्या?
सुना है आँसू आने पर मुस्कुराने लगे हो,
क्यों भई? रोने से डरने लगे हो क्या?
खूब वाह-वाही लूटी है उट-पटांग लिखकर,
आज कल गालियाँ खा रहे हो,
मियाँ सच लिखने लगे हो क्या?
अंधेरों से ये क्या लगाव होने लगा तुमको,
रोशनी में हक़ीक़त दिखने लगी थी क्या?
और इतना तन्हा रहने का राज़ क्या है?
होने वाले हो या बर्बाद हो चुके हो क्या?
अपनी गलतियाँ ही बस दिखती हैं अब तुमको,
इश्क़ में हो? या फिर सयाने होने लगे हो क्या?
मुस्कुरा काहे रहे हो सच सुन कर?
आज फिर कहीं से झूठ सुनकर आए हो क्या?
बहुत चुभने लगे हो आज कल सबको,
कईं टुकड़ों में टूट चुके हो क्या?