कहते हैं..बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा……..
कहते हैं बुरा मत सुनो,
बुरा मत देखो और
बुरा मत कहो,
बुरी है बुराई मेरे दोस्तों…..
कौन कहता है, कि लोग बुरा नहीं सुनते,न कहते, न बोलते
आदत सी पड़ गयी है उनको कान सेकने की
जब तक न सुने बुराई,पेट का दर्द रुकता ही नहीं
रुकता है तो बस कान में फुसफुसाहट सुनने के बाद
किस के घर में क्या हुआ, किस को कितना दहेज़ मिला
किस कि बीवी काम नहीं करती, किस का पति देर से आता है
किस के बच्चे आवारा हैं, किस का बच्चा डिप्टी बन गया है
न जाने क्या क्या होता है, हमारे घर कि गली गलिआरों में
क्यों बना यह गाना, जब सभी को गुनगुनाना नहीं आता है
देख कर बुराई को और ज्यादा ही भड़काना आता है,
रहम करना तो आता नहीं , बस कुछ देर को अपना मन बहलाना आता है
जब गुजरेगी खुद अपने घर पर, तो तमाशा संसार में बनाना आता है,
गली में कौन जा रहा है, बस अपनी टांग अडाना खूब आता है,
कोई अपनी डगर पर कुछ काम करे तो करे,उसका जलूस बंनाना आता है
जिन्दगी गुजर रही है, गाना पुराना हो रहा है,
लोगो का अंदाज हाई टेक जमाने में नजर आ रहा है
बड़े बड़े घरो में , बड़े बड़े दफ्तरों में,
इस गाने का अंदाज अलग हो रहा है
खीच कर टांग , दुनिया खुश हो रही है
अब तो मोबाइल के दौर में
सुनाई, दिखाई, का दौर चल रहा है
कब किस कि हो जाये ,कोंई नहीं जानता
सामने ही सामने रुसवाई हो रही है
यह वो जमाने का गाना बनने वाला नहीं जानता !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ