कहता है धागा मेरी कलाई का
कहता हैं धागा मेरी कलाई का
तुम फ़र्ज़ निभाना एक भाई का।
स्नेह का मोल नही मांगती मैं तुमसे
बस क़ीमत मांग लेती हूं मिठाई का।
वो नन्ही सी जान अब सायानी हो गयी है
कैसे करूँ तैयारी बहन की विदाई का।
कल तक गूंजती थी जिसकी किलकारियां
अब राह जोह रहा हूं मैं उसकी शहनाई का।
बेटियां कभी परायी नही होती अपनी होती हैं
ये बात और है के ज़माना नही रहा भलाई का।
बेटे अगर जागीर हैं पुश्तों की तो
बेटियां पूंजी हैं जीवन की कमाई का।
अब के सावन शिक़ायत कर रही थी बहना
भैय्या रस्ता देखते बीत गया महीना जुलाई का।।