क़हक़हा बेबसी पर लगाना नहीं
ग़ज़ल-(बहर-मुतदारिक मुसम्मन सालिम)
वज्न-212 212 212 212
अरकान -फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
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क़हक़हा बेबसी पर लगाना नहीं।
तुम तमाशा किसी का बनाना नहीं।।
जलजला तेरी दुनिया में आ जायेगा।
एक मज़लूम को तुम सताना नहीं।।
चांद तारों से महफ़िल ये बेशक़ सजी।
पर चिराग़ों को अब तुम बुझाना नहीं।।
गिर गये जो अगर तो बिख़र जाओगे।
ये बुंलदी है तुम डगमगाना नहीं।।
आसमां का पंरिदा तो उड़ता फिरे।
उसकी किस्मत में बस बैठ पाना नहीं।।
राह रोशन रहे तेरी इस चाह में।
बस्तियां मुफ़लिसों की जलाना नहीं।।
ये महल तेरा इक पल में ढह जायेगा।
नींव के पत्थरों को हिलाना नहीं।।
बक़्त है ग़र बुरा ग़म न कर तू “अनीश”।
हर समय अब रहे ये ज़माना नहीं।।
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