“कसक “
यादों के रेत पर ,
मैं जब भी तुम्हारी ,
तस्वीर उकेरता हूं ,
दिल तुमको ढूंढता है ,
तुम्हारे पास बैठकर ,
बातें करना चाहता है ।
ओभीनी- भीनी खुशबू,
वह बालो का एहसास ,
तेरे होठों पर वह ,
हंसी की बरसात ।
तभी उठती है ,
एक लहर ,
मन अधीर हो जाता है,
तस्वीर मिट जाती है ,
रह जाती है
“एक कसक”।
बागों में पतझड़ ,
केआने से लेकर ,
बहारों के आने तक,
मैं इंतजार करता हूं ,
तुम्हारा ।
डाली में खिली ,
पहली फूल के साथ,
मैं तुम्हें लेकर ,
जाना चाहता हूं ,
दूर ,
छितीज के पार ,
जहां सिर्फ ,
मैं और तुम हो ।
तभी उठते हैं ,
काले-काले बादल,
बिजली कड़कती है ,
बज्रपात होता है,
कुचल कर रख देती है,
सारे अरमान को,
रह जाती है ,
“एक कसक”।
”’सुनील पासवान”’
”’कुशीनगर”’