कश्मीर व्यथा या एक कथा
कश्यप की भूमि था कश्मीर, संतो की जननी था कश्मीर।
ध्यान केंद्र था कश्मीर और ज्ञान केंद्र था कश्मीर।।
नागभट्ट था कश्मीर और शंकर का कंकर था कश्मीर।
प्यासो की भूमि था कश्मीर, ज्ञान पुंज था कश्मीर।।
ललितादित्य था कश्मीर, आनंदकंद था कश्मीर।
शांत बहुत था ये कश्मीर, सबसे न्यारा था कश्मीर।।
प्यारों से प्यारा था कश्मीर, राजदुलारा था कश्मीर।
मरने को छोड़ा था कश्मीर, लूटने को छोड़ा था कश्मीर।।
हर घर में शंकर था कश्मीर, मंत्रों की भूमि था कश्मीर।
ज्ञान खजाना था कश्मीर, षड्यंत्रो से अनजान था कश्मीर।।
कडम दीवाना था कश्मीर, शांतस्वभाव था कश्मीर।
गले लगाता था कश्मीर, पहचान हमारी था कश्मीर।।
बंदूकों और गद्दारों की खान बना था ये कश्मीर।
मैं लिखूं शब्द या काव्य लिखूं, मैं दर्द के उनका बोध लिखूं।।
मैं कल्पना नहीं कर सकता हूँ, मैं सोच नहीं ये सकता हूँ।
देवालियों की भूमि था कश्मीर, शंकर का प्यारा था कश्मीर।।
न्यारों से न्यारा था कश्मीर, आँखों का तारा था कश्मीर।
संस्कृति बोध कराता था कश्मीर, डर का मारा था कश्मीर।।
सपनों सा प्यारा था कश्मीर, अपनों का मारा था कश्मीर।
आर्यो का आर्यव्रत था कश्मीर, अपनों ने भूला था कश्मीर।।
प्रेम दीवाना था कश्मीर, अपनों का मारा था कश्मीर।
बेरुखी देश की झेली जिसने, वही हमारा था कश्मीर।।
जान गवाई पर धर्म बचाया, ऐसा न्यारा था कश्मीर।
अत्याचार सहे इतने थे, कैसा प्यारा था कश्मीर।।
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“ललकार भारद्वाज”