कश्ती
अपने ही सवालों में,उलझी हैं जिंदगी मेरी,
मन के समँदर में,फँस गयी है कश्ती मेरी।
बन के पतवार तूने,हौसला बढ़ाया था,
बिन तेरे कैसे आगे बढ़ेगी,कश्ती मेरी।
मैंने देखा है,भीतर ही सैलाब को उमड़ते हुए,
किसी भी पल,जो डुबो देगा कश्ती मेरी।
तू लौट आए,गर मुमकिन हो,
तेरे साथ किनारा,पा लेगी कश्ती मेरी।
डॉ प्रिया सोनी खरे