कशमकश
चलो एक पहल करते है
महिलाओं को उनकी
कशमकश की जिन्दगी से बाहर निकालते है
बहुत जी लिए उन्होंने इस अधर मे
अब इस अधर से बाहर निकालते है।
आज भी बहुत सारी महिलाएँ है
जो सिर्फ कहने के लिए आजाद है
पर आज भी वह घर के भीतर गुलाम है
उन्हें इस गुलामी से आजाद कराते है।
आज भी वें अपने लिए
फैसला नही ले पाती है।
कुछ भी करने से पहले
सौ बार पूँछती है अपने घरो मे
यह काम करूँ या न करूँ मै।
आज भी उनकी जिन्दगी
दूसरे के हाँ और ना पर टीकी है
चलो एक पहल करते है
उन्हे इस कशमकश की जिन्दगी से
बाहर निकालते है।
अपनी जिन्दगी का फैसला
लेने का पुरा हक है उन्हें
यह आत्मविश्वास
उनके मन मे जगाते है
जी सकते है वह भी स्वाभिमान से
यह बात उनके दिलो-दिमाग मे डालते है।
दबी कुचली महिलाएँ जो घर मे
रोज हो रहे शोषण का शिकार होती है
कोई शिकारी शिकार न बनाएँ महिलाओ को
ऐसा कुछ पहल करते है।
हर घर मे जगाते है एक लौ
महिलाओ के सम्मान के लिए
हर घर मे दिलाते है उन्हें उनका सम्मान
चलो एक पहल करते है
उन्हें कशमकश की जिन्दगी से
बाहर निकालते है।
~अनामिका