कवि
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मैं कवि नहीं हर कविता का शृंगार हूँ मैं ।
क्षण में बहता जल जैसा क्षण में दहका अंगार हूँ मैं।
जो भोगा जीवन-पथ पर चलता,
जो ढहते लोगों पर देखा ,
होकर उस क्षण का साथी
कहने के लिए हथियार हूँ मैं।
समझ विकसित करने मैं अपना नजरिया रखता हूँ
मेरे ‘कहने से’ आंदोलन नहीं होता खड़ा।
मेरा ‘लिखा समझने से’
छोटा विरोध होता है, क्रांति बड़ा।
शब्द जादूगर होते हैं।
इसकी परिधि में
प्रयास कारगर होते हैं।
लोरियाँ शब्दों की हैं फुलझड़ियाँ।
शब्द हैं कवियों के भाव की कड़ियाँ।
तुम गीत सुनो या गाथा।
तेरे भविष्य से इसका बड़ा है नाता।
मैं गर्भ धारण करूंगा जंगल में,
मैं गर्भ धारण नहीं करूंगा
मैं कभी आस्था कभी धरती ही के लिए तो लड़ूँगा ।
लड़ना नहीं है मुझे।
कवि हूँ मैं।
दरबारी राग नहीं।
खुश करना आदत नहीं है मेरी
या संस्कार।
भय हमेशा तुमसे बड़ा होता है।
तभी तुम फतह कर पाते हो।
भय तुम्हें कविता का लय देता है।
कविता तुम्हें भय से करता है मुक्त।
हिंदुस्तान की आजादी में कविता सामने आया।
दुश्मन तलवार की धार को भोथरा बना गया।
कविता जीविका नहीं कर्तव्य है।
कवि अप्रत्यक्ष योद्धा है।
कर्तव्य प्रत्यक्ष।
कविता का हर शब्द प्रेम है,
निकले कलम से।
कविता का हर वाक्य अत्याचार का विरोध है
निकले तीर और तलवार से।
मैं लिखता हूँ कविता लोगों के मन में।
उसके तन के लिए।
विश्व में सौहार्द्र और अमन के लिए।
मैं कवि रहूँ सर्वदा हर वतन के लिए!
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