“कवि”
“कवि”
कलम की आग से
कोई घर नहीं, शमा जलाता है कवि,
सोये हुए ख्वाब को
दे-दे करके दस्तक जगाता है कवि।
भाषा की जड़ता को
उर-अन्तस में प्रवेश कर तोड़ देता है कवि,
भाषा की दिशा को
रस की ओर पूरी तरह मोड़ देता है कवि।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति